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“स्वंतंत्रता, देश का विभाजन एवं एकीकरण: भारत में परिवर्तन की कहानी” विषय पर हुई चर्चा इतिहासकार ( इत

गौतमबुद्धनगर।गौतमबुद्धविश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने छात्रों के ज्ञान वर्धन हेतु समय समय पर इतिहास के प्रमुख पहलुओं पर व्याख्यान का आयोजन किया जाता रहा है। उसी क्रम में आज दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहासकार डॉ. भुवन कुमार झा ने “स्वंतंत्रता, देश का विभाजन एवं एकीकरण: भारत में परिवर्तन की कहानी” विषय पर एक रोचक वक्तव्य दिया, जिसमें उन्होंने भारत के इतिहास के महत्वपूर्ण परिवर्तनों पर प्रकाश डाला जो 1946 के अंत से 1948 के अंत तक बीच हुए हुए थे। इस वक्तावधि में भारत ने राजनीति और भूगोल महत्वपूर्ण बदलाव हुई थी, जो आधुनिक दुनिया के लिए एक नये राष्ट्र के लिये अभूतपूर्व घटना क्रम थी। अपने वक्तव्य के दौरान, डॉ. झा ने इस काल के महत्वपूर्ण परिवर्तनों पर बल दिया, जो भारत के प्रगति के मार्ग को प्रभावित किया। उन्होंने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की प्राप्ति से लेकर एक प्राचीन सभ्यता वाले राष्ट्र के विभाजन, और 550 से अधिक रियासतों का एकीकरण जैसे महत्वपूर्ण घटनाचक्र पर विशेष प्रकाश डाला।डॉ. झा ने उपनिवेश में, विभाजन की प्रक्रियाओं और सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा एकीकरण की नितान्त आवश्यक यात्रा पर जोर दिया। उन्होंने यहां तक कि जिन्नाह द्वारा कल्पित दो राष्ट्र सिद्धांत को सफलतापूर्वक निर्देशित किया गया, जिससे वे ब्रिटिश विभाजक नीतियों और कांग्रेस के दूसरे विश्व युद्ध के दौरान के जिम्मेदार, लेकिन अमान्य निर्णयों के बीच के जटिल संवाद की ओर इशारा किया।डॉ. भुवन झा के वक्तव्य ने भारत के इतिहास के एक महत्वपूर्ण काल में मूल्यवान अवधारणाओं को साझा किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता प्रो बन्दना पांडेय ने किया और अपने अध्यक्षीय व्याख्यान में आज के कार्यक्रम के विषय की महत्ता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के समन्वयक डॉ राकेश कुमार श्रीवास्तव ने मुख्य वक्ता का परिचय छात्रों से करवाया और साथ ही डॉ भुवन झा को सहर्ष आमंत्रण स्वीकार करने हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया। वहीं डॉ संगीता वाधवा ने डॉ झा का माल्यार्पण के साथ मंच पर स्वागत किया। मंच का संचालन डॉ रीतिका जोशी ने किया। इस कार्यक्रम में छात्रों के अलावा विभाग के प्राध्यापक मौजूद रहे जिनके नाम हैं डॉ उपेन्द्र सिंह, डॉ विवेक पचौरी, डॉ प्रकाश रंजन, डॉ आलोक कुमार, श्री चित्रांशु, इत्यादि।